डिप्रेशन यानी कि अवसाद एक मानसिक स्थिति है जिसमें कई नकारात्मक लक्षण देखने को मिलते हैं। खुशी महसूस न करना, लाचारी, दुखी रहना, निराशा जैसी भावनाएं यदि लंबे समय तक आपके भीतर बनी रहती हैं, तो यह डिप्रेशन यानी कि अवसाद का रूप ले लेती है। डिप्रेशन की स्थिति में मानसिक परेशानी के साथ-साथ कई शारीरिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है।
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन के अनुसार वैश्विक स्तर पर, 2015 में अवसाद से ग्रस्त लोगों की कुल संख्या 300 मिलियन से अधिक होने का अनुमान लगाया गया था, जो दुनिया की आबादी के 4.3% के बराबर है। भारत में, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 से पता चला कि लगभग 15% भारतीय वयस्कों को एक या अधिक मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए सक्रिय हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है और 20 में से एक भारतीय अवसाद से पीड़ित है। अनुमान है कि 2012 में, भारत में 258,000 से अधिक आत्महत्याएं हुईं, जिनमें 15-49 वर्ष का आयु वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुआ। भारत में 9.3 प्रतिशत युवाओं (18-24 वर्ष) को लॉकडाउन के शुरुआती महीनों (मई 2020) में अवसाद का सामना करना पड़ा, जो मार्च 2022 तक बढ़कर 16.8 प्रतिशत हो गया।
सेरोटोनिन और डोपामाइन सहित न्यूरोट्रांसमीटर का असंतुलन, अवसाद के विकास में योगदान देता है।
यदि आपके माता-पिता या भाई-बहन को अवसाद है, तो आपमें सामान्य लोगों की तुलना में इस स्थिति के विकसित होने की संभावना लगभग तीन गुना अधिक होती है। हालांकि, बिना पारिवारिक इतिहास के भी आपको अवसाद हो सकता है।
कठिन अनुभव, जैसे किसी प्रियजन की मृत्यु, आघात, तलाक, अलगाव और सहयोगी की कमी, अवसाद को ट्रिगर कर सकते हैं।
क्रोनिक पेन और डायबिटीज जैसे अन्य लाइफटाइम डिसऑर्डर अवसाद का कारण बन सकते हैं। इसके अलावा उम्र के साथ बढ़ती शारीरिक अक्षमता भी बुजुर्गों में अवसाद को ट्रिगर कर सकती है।
कुछ दवाइयां दुष्प्रभाव के रूप में अवसाद का कारण बन सकती हैं। शराब सहित अन्य चीजें जिनमें अल्कोहल मिला हो, उनका सेवन भी अवसाद का कारण बन सकता है या इसकी स्थिति को बदतर बना सकता है।
कुछ लोग खुद को परफेक्ट दिखाना चाहते हैं। ऐसे में कभी-कभी ऐसा न कर पाने के कारण वे अत्यधिक शर्मिंदगी महसूस करने लगते हैं। ऐसे में अधिक तनाव के कारण मानसिक तौर पर अशांत और अवसाद के शिकार हो सकते हैं।
डिप्रेशन को डायग्नोज करने के लिए डॉक्टर आपको फिजिकली एग्जामिन कर सकते हैं। वहीं उनके द्वारा कुछ सवाल पूछे जाते हैं। वे आपकी शारीरिक सेहत से जुड़े सवाल पूछते हैं, क्योंकि कई बार डिप्रेशन स्वास्थ्य समस्याओं और दवाइयों के साइड इफेक्ट के रूप में भी देखने को मिलता है।
लैब टेस्ट की प्रक्रिया अपनाई जाती है, जिसमें खून की जांच की जाती है और इससे आपकी स्थिति को मापा जाता है। खासकर थायराइड की स्थिति जांची जाती है और देखा जाता है कि आपके सभी शारीरिक फंक्शन सही से कार्य कर रहे है या नहीं।
इस दौरान साइकेट्रिस्ट आपकी भावनाओं एवं अंदरूनी रूप से चल रहे विचारों, ख्यालों पर चर्चा करते हैं। उनके द्वारा कुछ मानसिक सवाल पूछे जाते हैं, जिनका उत्तर आपके डिप्रेशन की स्थिति को डायग्नोज करने में मदद करता है।
मनोचिकित्सा (टॉक थेरेपी) में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर यानि की मेन्टल हेल्थ स्क्सपर्ट से बातचीत शामिल है। आपका चिकित्सक आपको अस्वस्थ भावनाओं, विचारों और व्यवहारों को पहचानने और बदलने में मदद करता है। मनोचिकित्सा कई प्रकार के हो सकते हैं, संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (cognitive behavioral therapy) इनमें से सबसे आम है। कभी-कभी, आपको संक्षिप्त चिकित्सा की ही आवश्यकता होती है। कई लोग महीनों या वर्षों तक उपचार जारी रखते हैं।
एंटीडिप्रेसेंट नामक प्रिस्क्रिप्शन दवा डिप्रेशन की स्थिति उत्त्पन करने वाले ब्रेन केमिकल को बदलने में मदद करती हैं। कई अलग-अलग प्रकार के एंटीडिप्रेसेंट हैं और इनमें से आपके लिए कौन सी दवा अधिक प्रभावी है इसका पता लगाने के लिए डॉक्टर से मिल सलाह लेने की आवश्यकता है।
इसमें वे उपचार शामिल हैं जो आप पारंपरिक पश्चिमी चिकित्सा के साथ प्राप्त कर सकती हैं। हल्के अवसाद से पीड़ित या मौजूदा लक्षण वाले लोग एक्यूपंक्चर, मालिश, सम्मोहन और बायोफीडबैक जैसे उपचारों से अपनी स्थिति में सुधार कर सकते हैं।
मस्तिष्क उत्तेजना चिकित्सा यानि की ब्रेन स्टिमुलेशन थेरेपी उन लोगों की मदद कर सकती है जो गंभीर अवसाद या मनोविकृति से पीड़ित हैं। मस्तिष्क उत्तेजना चिकित्सा के प्रकारों में इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी (ईसीटी), ट्रान्स्क्रनिअल मैगनेटिक स्टिम्युलेशन (टीएमएस) और वेगस नर्व स्टिम्युलेशन (वीएनएस) शामिल हैं।
डिप्रेशन के शुरुआती लक्षणों में शामिल है लगातार दुखी और मायूस रहना। इसके साथ ही होपलेस और हेल्पलेस महसूस करना भी अवसाद के लक्षण हैं। सिर दर्द का अनुभव, भूख की कमी, नींद न आना और बॉडी पेन आदि डिप्रेशन के बढ़ते स्तर का संकेत हैं।
डिप्रेशन को डायगनोज करने के लिए पहला कदम डॉक्टर के पास जाना है। कुछ दवाएं, और कुछ चिकित्सीय स्थियां जैसे थायरॉयड, अवसाद जैसे लक्षण पैदा कर सकते हैं। एक डॉक्टर शारीरिक परीक्षण, साक्षात्कार और लैब टेस्ट करके इन संभावनाओं का पता लगाते हैं। डिप्रेशन को पहले सामान्य रूप से लाइफस्टाइल में कुछ जरूरी बदलाव कर ट्रीट करने की सलाह दी जाती है, परंतु सुधार न होने पर साइकैटरिस्ट से सलाह लेना आवश्यक है।
बहुत से लोग अवसाद के कारण शारीरिक परिवर्तन देखते हैं। कुछ लोगों का वजन कम हो जाता है क्योंकि उनकी भूख कम हो जाती है या वे बीमार महसूस करते हैं। दूसरों का वज़न इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि वे व्यायाम करना बंद कर सकते हैं या अधिक भोजन की ओर रुख कर सकते हैं। ऐसा हार्मोनल बदलाव के कारण होता है।
कभी-कभी, अवसाद के लक्षण केवल कुछ हफ्तों तक ही रहते हैं। हालांकि, कई लोगों के लिए, अनुपचारित अवसाद महीनों और वर्षों तक भी रह सकता है। भले ही आपने कितने समय तक अवसाद का अनुभव किया हो, स्थिति का इलाज संभव है। इसका इलाज पूरी तरह से मरीज के ऊपर निर्भर है, यदि वे इससे बाहर आना चाहते हैं तो बिना दवाइ या डॉक्टर के भी इससे निपटना मुमकिन है वहीं जो व्यक्ति खुदसे प्रयास नहीं करता वे तमाम चिकित्सा उपचारों के बाद भी इस स्थिति में जकड़ा रहता है।
बच्चे को जन्म देने के बाद अधिकांश महिलाएं अवसाद की चपेट में आ जाती हैं। हार्मोनल और शारीरिक परिवर्तन और नवजात शिशु की देखभाल की नई जिम्मेदारी के कारण अक्सर ऐसा होता है। कई महिलाएं इस दौरान अपने मूड में फ्रिक्वेंट बदलाव का अनुभव करती हैं जिसे "बेबी ब्लूज़" के रूप में जाना जाता है। ये लक्षण आमतौर पर बच्चे के जन्म 10वें दिन तक ख़त्म हो जाते हैं। पीपीडी 10 दिनों से अधिक समय तक रह सकता है, और बच्चे के जन्म के बाद महीनों तक रह सकता है। तीव्र पीपीडी एक अधिक गंभीर स्थिति है जिसके लिए नई मां को सक्रिय उपचार और भावनात्मक समर्थन की आवश्यकता होती है।