कंजक्टिवाइटिस वास्तव में बैक्टीरिया या वायरस से संक्रमण या एलर्जी से आंखों की कंजक्टिवा (Conjunctiva) में आने वाली सूजन है। इसमें आंखें लाल हो जाती हैं। कभी-कभी आंखों से चिपचिपा स्राव भी होता है। एक या दोनों आंखों में कंजक्टिवाइटिस (Conjunctivitis) हो सकता है। बैक्टीरियल और वायरल कंजंक्टिवाइटिस संक्रामक होने के कारण ये आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकती है। एलर्जी के कारण होने वाला कंजक्टिवाइटिस (Conjunctivitis) नहीं फैलता है।
कंजंक्टिवाइटिस (conjunctivitis) आई फ्लू (Eye flu) या पिंक आई (Pink eye) के नाम से भी जाना जाता है। यह आंखों के कंजंक्टिवा की सूजन है। कंजंक्टिवा टिश्यू संरचना है, जो आंख के सफेद हिस्से पर स्थित होता है। यह पलक के अंदर की रेखा भी बनाता है। इस रोग से आंख और पलक दोनों में सूजन आ जाती है।
बारिश शुरू होते ही दिल्ली एम्स (AIIMS Delhi) में रोजाना 100 से अधिक कंजक्टिवाइटिस के मरीज आने लगते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि कंजक्टिवाइटिस से बचाव के लिए बारिश के मौसम में सबसे अधिक जरूरी है संक्रमण के प्रति हर पल सतर्क रहना।
कंजक्टिवाइटिस के कारण स्कूल या ऑफिस से दूर रहने की ज़रूरत नहीं है। यह ध्यान देने की जरूरत है कि आपसे संक्रमण दूसरे लोगों तक न फैले। यदि बहुत अधिक समस्या हो रही है, तो घर पर रहकर आराम करें।
बहुत छोटे बच्चे को यह समस्या होने पर संक्रमण ठीक होने तक स्कूल न भेजना ही ठीक होगा।
ठीक होने तक फोन और कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट साझा न करें।
यह सबसे आम प्रकार है। बहुत संक्रामक होने के कारण अक्सर स्कूलों और अन्य भीड़-भाड़ वाली जगहों से यह फैलता है। इसके कारण आंखों में जलन, लाल आंखें और पानी जैसा स्राव होता है।
यह भी बहुत संक्रामक है। बैक्टीरिया से संक्रमण के कारण आंख गुलाबी हो जाती है। इसके कारण आंखों में दर्द, लाल आंखें और बहुत अधिक चिपचिपा मवाद निकलता है।
एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस पोलेन ग्रेन्स, पशुओं, सिगरेट के धुएं, पूल क्लोरीन, कार के धुएं या पर्यावरण में मौजूद किसी अन्य चीज से होता है। यह संक्रामक नहीं है। आंखों में बहुत खुजली, लाली और पानी आने लगता है। पलकें सूज सकती हैं।
प्रमुख लक्षण | जटिल कंजक्टिवाइटिस (conjunctivitis complications)ज्यादातर मामलों में यह स्वास्थ्य के लिए कोई गंभीर खतरा पैदा नहीं करता है। कुछ मामलों में यह गंभीर भी हो सकता है। |
उपचार |
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आंखों के सफेद भाग में गुलाबीपन या लाली दिखना।
कंजंक्टिवा की पतली परत आंख के सफेद भाग और पलक के अंदर की रेखा बनाती है। इसमें सूजन आ जाना।
टीअर प्रोडक्शन बढ़ने से आंखों में बार-बार आंसू आने लगते हैं।
आंखों में खुजली जैसा महसूस होना, आंख मलने की बार-बार इच्छा होना।
आंखों में जलन महसूस होना।
आंखों से मवाद या बलगम जैसा निकलना
ऊपर और नीचे वाली पलकों पर पपड़ी जैसी बन जाना या आंखें चिपक जाना।
कांटेक्ट लेंस लगाने में दिक्कत महसूस होना।
ज्यादातर मामलों में हेल्थ केयर प्रोवाइडर आंख के लक्षणों के बारे में पूछकर और उनकी जांच करके इस रोग का निदान करते हैं।
कुछ मामलों में आंख से निकलने वाले तरल पदार्थ के नमूने को कल्चर किया जा सकता है।
आंख में मौजूद फॉरेन पार्टिकल की जांच की जा सकती है।
गंभीर बैक्टीरियल इन्फेक्शन या यौन संचारित संक्रमण होने पर भी इसकी जांच की जाती है।
ज्यादातर मामलों में एंटीबायोटिक आई ड्रॉप नहीं दी जाती है। वायरल इन्फेक्शन में एंटीबायोटिक मदद नहीं करते हैं।
एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस के लिए आई ड्रॉप दी जा सकती है। एंटीहिस्टामाइन और मास्ट सेल स्टेबलाइजर दवा प्रमुख है।
आर्टिफिशियल टियर का उपयोग करना।
पलकों को साफ़ और गीले कॉटन कपड़े से साफ करना।
रोजाना कई बार ठंडी या गर्म सिकाई करना।
कॉन्टैक्ट लेंस और आई मेकअप का इस्तेमाल न करना।
बरसात में नमी और आर्द्रता मौजूद होती है, जो बैक्टीरिया और वायरस के विकास और प्रसार में मदद करती है। कंजंक्टिवाइटिस के कारण दैनिक जीवन प्रभावित हो सकता है।
आंखों के संक्रमण की यह समस्या किसी भी व्यक्ति को हो सकता है। यह एक आम फ्लू की तरह है। बच्चों को इसका खतरा अधिक होता है, क्योंकि वे स्कूल में कई बच्चों के संपर्क में आते हैं और अपनी देखभाल के प्रति लापरवाह होते हैं।
4 से 15 दिनों के बीच यह रह सकता है। वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण के साथ-साथ जल्दी उपचार शुरू करने पर भी यह निर्भर करता है। नवजात शिशु को यह संक्रमण 3 सप्ताह से अधिक समय तक रह सकता है।
अपनी आंखों को बार-बार छूने और गैजेट्स की तेज रोशनी के संपर्क में आने से बचें।
यदि इसके लक्षण गंभीर नहीं दिख रहे हैं, तो इसे घरेलू उपचार से ठीक किया जा सकता है। लक्षण गंभीर दिखने पर तुरंत डॉक्टर की राय लें। सूजन अन्य कारणों से भी हो सकती है। नवजात शिशु को संक्रमण होने पर तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं।