ग्लूकोमा आंख की ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचा देता है। इसके कारण समय के साथ आंखें खराब हो जाती हैं। यह अक्सर आंख के अंदर दबाव बनने से होता है। ग्लूकोमा जेनेटिक भी हो सकता है और उम्र बढ़ने के साथ भी यह समस्या हो सकती है।
यह आंखों के लिए एक खतरनाक स्थिति है। आंख में बढ़ा हुआ दबाव, जिसे इंट्राओकुलर दबाव कहा जाता है, ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचा सकता है। ऑप्टिक नर्व के माध्यम से ही ब्रेन को इमेज मिलती है। यदि समय पर इलाज नहीं किया जाता है, तो ग्लूकोमा कुछ वर्षों के भीतर स्थायी रूप से विजन लॉस या कम्प्लीट ब्लाइंडनेस का कारण बन सकता है।
ग्लूकोमा से पीड़ित ज्यादातर लोगों में कोई प्रारंभिक लक्षण नहीं दिखते, न ही किसी तरह का दर्द होता है। इसलिए आई स्पेशलिस्ट से नियमित रूप से मिलते रहना चाहिए। इससे समय रहते ग्लूकोमा का निदान और उपचार हो सकता है। एक बार विजन लॉस होने पर उसे वापस नहीं लाया जा सकता। इसलिए जरूरी है कि आप नियमित आंखों की जांच करवाते रहें। आंखों पर पड़ने वाले दबाव को कंट्रोल करके विजन बनाए रखने में मदद मिल सकती है।
आंख के अंदर के तरल पदार्थ को एक्वस ह्यूमर कहा जाता है। यह आमतौर पर एक जाली जैसे चैनल के माध्यम से आंख से बाहर बहता है। यदि यह चैनल अवरुद्ध हो जाता है या आंख बहुत अधिक तरल पदार्थ का उत्पादन करने लगती है, तो यह फ्लूइड जमा होने लगता है। जिससे ग्लूकोमा विकसित होने लगता है। कभी-कभी जीन भी इसकी वजह बनते हैं।
आंख पर चोट लगने, केमिकल, आंखों में गंभीर संक्रमण, आंख के अंदर ब्लड वेसल्स के अवरुद्ध होने और सूजन संबंधी स्थितियों के कारण भी हो सकता है। किसी अन्य स्थिति को ठीक करने के लिए की जा रही आंखों की सर्जरी के दौरान भी इस समस्या का पता चल सकता है। यह आमतौर पर दोनों आंखों को प्रभावित करता है। किसी एक आंख में यह और बदतर हो सकता है।
ग्लूकोमा ज्यादातर 40 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों को प्रभावित करता है। यह युवा वयस्कों, बच्चों और यहां तक कि शिशुओं को भी हो सकता है। ग्लूकोमा का पारिवारिक इतिहास होने पर, विजन कमजोर होने पर, डायबिटीज होने पर, कॉर्निया सामान्य से अधिक पतले होने पर, हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट डिजीज और सिकल सेल एनीमिया भी ग्लूकोमा के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।
यह भी पढ़ें – Dry Eye Syndrome : ड्राय आई सिंड्रोम क्या है, जानें किन कारणों से आंखों में बढ़ने लगता है रूखापन
ग्लूकोमा का इलाज अक्सर आईड्रॉप्स, लेजर ट्रैबेकुलोप्लास्टी और माइक्रोसर्जरी के संयोजन से किया जाता है। डॉक्टर दवाओं से शुरुआत करते हैं। लेजर सर्जरी या माइक्रोसर्जरी कुछ लोगों के लिए बेहतर काम कर सकती है।
ये या तो आंख में तरल पदार्थ के निर्माण को कम कर देते हैं या इसके प्रवाह को बढ़ा देते हैं। इससे आंखों पर दबाव कम हो जाता है। साइड इफेक्ट्स में एलर्जी, लालिमा, चुभन, धुंधली दृष्टि और आंखों में जलन शामिल हो सकती है। ग्लूकोमा की कुछ दवाएं आपके हृदय और फेफड़ों को प्रभावित कर सकती हैं।
डॉक्टर ओरल मेडिसिन भी लिख सकते हैं, जैसे बीटा-ब्लॉकर या कार्बोनिक एनहाइड्रेज़ इनहिबिटर। ये दवाएं आई फ्लूइड पर प्रभाव डाल सकती हैं।
लेज़र सर्जरी आंख से तरल पदार्थ के प्रवाह को थोड़ा बढ़ा सकती है। यदि मोतियाबिंद है, तो यह द्रव अवरोध को रोक सकता है। प्रक्रियाओं में शामिल हैं: ट्रैबेकुलोप्लास्टी, इरिडोटॉमी, साइक्लोफोटोकोएग्यूलेशन, माइक्रोसर्जरी आदि। इनवेसिव ग्लूकोमा सर्जरी भी की जा सकती है।
ग्लूकोमा आंखों की बीमारियों का एक समूह है, जो आपकी आंख के पीछे ऑप्टिक तंत्रिका नामक तंत्रिका को नुकसान पहुंचाकर विजन लॉस और अंधापन का कारण बन सकता है। इसके लक्षण इतने धीरे-धीरे शुरू होते हैं कि शुरूआत में उन पर ध्यान ही नहीं जाता। इसलिए आंखों की नियमित जांच की सलाह दी जाती है।
ग्लूकोमा के रोगियों में विटामिन डी की कमी हो सकती है। हालांकि इसके लिए और बहुत से कारण जिम्मेदार हैं, जिनमें जीन और आंख का चोटिल होना भी शामिल है।
एंटीऑक्सिडेंट और नाइट्रेट ग्लूकोमा के खतरे को कम कर सकते हैं। ये फलों और सब्जियों में पाए जाते हैं। खूब सारे फल और सब्जियां खाना सबसे अच्छा है, खासकर वे जो विटामिन ए और सी, कैरोटीन और नाइट्रेट से भरपूर हों। इनमें हरी पत्तेदार सब्जियां, गाजर, क्रूसिएट सब्जियां, जामुन, खट्टे फल और आड़ू शामिल हैं।
पैदल चलना, साइकिल चलाना और तैराकी जैसे कम प्रभाव वाले एरोबिक व्यायाम करने से ऑप्टिक नर्व में ब्लड फ्लो को बढ़ावा मिल सकता है। इससे इंट्राओकुलर दबाव को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। एरोबिक व्यायाम हृदय और मस्तिष्क में ब्लड फ्लो को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते हैं। इसलिए वे ग्लूकोमा में भी लाभ पहुंचा सकते हैं।
हालांकि अभी तक ऐसे किसी व्यायाम के बारे में ठोस सबूत नहीं मिले हैं, जो ग्लूकोमा का जोखिम बढ़ा सकते हैं। मगर ग्लूकोमा के रोगियों को ऐसे व्यायामों से बचने की सलाह दी जाती है, जो आंखों पर दबाव बढ़ाते हैं। जैसे अधाेमुख श्वानासन, जिनमें हृदय की पोजीशन आंखों से ऊपर हो जाती है। या फिर कोई भी सिर झुकाने वाला व्यायाम।