निमोनिया एक ऐसा संक्रमण है, जो प्रत्यक्ष रूप से फेफड़ों की सेहत को प्रभावित करता है। वे लोग जिनका इम्यून सिस्टम कमज़ोर हैं। फिर चाहे, वो बच्चे हो, बड़े हों या बुजुर्ग आसानी से इस समस्या की चपेट में आ जाते हैं। इसके चलते खांसी, जुकाम, बुखार और छाती में बलगम जमने की स्थिति पैदा हो जाती है। प्रदूषण से लेकर वातावरण में मौजूद कई प्रकार के बैक्टीरिया निमोनिया के प्रकोप का मुख्य कारण साबित होते हैं। दवाओं के साथ साथ घरेलू नुस्खे और सावधानी भी इस समस्या को कम करने में मुख्य भूमिका निभाती हैं।
फेफड़ों का कार्य ऑक्सीजन को इनहेल करके कार्बनडाइऑक्साइड को बाहर निकालना है। पूर्ण रूप से सांस न लेना इस समस्या के लक्षणों को पैदा कर सकता है। वे लोग जो पहले से ही ब्रोंकाइटिसिस व अस्थमा समेत लंग्स की किसी भी समस्या से ग्रस्त हैं। उनके लिए निमोनिया जानलेवा साबित हो सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायरस या बैक्टीरिया के कारण शरीर में फैलने वाला निमोनिया एक्यूट रेस्पीरेटरी संकमण के रूप में जाना जाता है। जो हर उम्र के लोगों के लिए एक जानलेवा बीमारी का कारण बन सकता है। खासतौर से दुनियाभर में बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण बनकर उभर रहा है। आंकड़ों के अनुसार साल 2017 में 5 वर्ष से कम उम्र के 808,000 से अधिक बच्चों की निमोनिया से मौत हुई। वे लोग जिनकी आयु 65 वर्ष से अधिक है या जो किसी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे हैं। उनमें इस समस्या से ग्रस्त होने का खतरा बढ़ने लगता है।
हवा में मौजूद पॉल्यूटेंटस इस समस्या को बार-बार ट्रिगर करते हैं। जो फेफड़ों में मौजूद थैली को तरल पदार्थ और बलगम से भर देते हैं। इससे कंजेशन की समस्या बढ़ती है। जो लगातार खांसी, रनिंग नोज़ और सांस में तकलीफ का कारण साबित होती है। जहां बढ़ने वाली हल्की ठंड और फ्लू वायरल निमोनिया का कारण साबित होते हैं। तो वहीं बैक्टीरियल निमानिया से भी सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। इसके अलावा माइकोप्लाज़मा निमोनिया, एस्पिरेशन निमोनिया और फंगन निमोनिया भी इसी के प्रकार है। जो प्रदूषण, स्मोकिंग, शराब का सेवन, पोषक तत्वों की कमी और कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण लोगों को अपनी चपेट में ले लेता है।
इस प्रकार के निमोनिया को नोसोकोमियल निमोनिया के रूप में भी जाना जाता है। जो लोग पहले से ही किसी बीमारी से ग्रस्त है। उनमें इसका जोखिम बढ़ने लगता है। दरअसल ये बैक्टीरिया एंटीबायोटिक दवाओं के लिए अधिक प्रतिरोधी हो सकते हैं। जो इस प्रकार के निमोनिया की गंभीरता को बढ़ा सकता है। वे लोग जो वेंटिलेटर पर हैं। उन लोगों में इसका खतरा सबसे अधिक होता है। ये अक्सर स्टैफिलोकोसी और स्यूडोमोनास एरुगिनोसा जैसे बैक्टीरिया के कारण बढ़ने लगता है।
दूसरे प्रकार के इस निमोनिया को समुदाय अधिग्रहित निमोनिया के रूप में जाना जाता है। जो पर्यावरण में पाए जाने वाले न्यूमोकोकस बैक्टीरिया के कारण होता है। ये किसी भी उम्र के व्यक्ति को अपनी चपेट में ले सकता हैं। जो खांसी, सांस लेने की समस्या और थकान का कारण बनने लगता है।
अमूमन देखा जाता है | हैंड सेनिटाइज़र का इस्तेमाल2 से लेकर 5 साल के बच्चों में भी निमोनिया का खतरा बना रहता है। अल्कोहल बेस्ड सेनिटाइज़र से हाथों को साफ करें। इससे संक्रमण का खतरा कम हो जाता है। चेहरे को ढक कर रखेंपर्यावरण में मौजूद बैक्टीरिया से खुद को बचाने के लिए कॉटन के कपड़े से चेहरे को कवर कर लें। कहीं भी बाहर जाने से पहले चेहरे को कवर कर लें। इसके अलावा खांसने और छींकने से पहले भी चेहरे को रूमाल से ढक लें। हेल्दी फूड खाएं और पूरी नींद लेंशरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए भरपूर नींद लें, हेल्दी फूड खांए और रोज़ाना कुछ देर एक्सरसाइज़ भी करें। इससे शरीर हेल्दी और फिट बना रहता है। साथ ही स्मोकिंग और अल्कोहल इनटेक से बचें। |
फेफड़ों को प्रभावित करने वाले इस रोग में चेस्ट कंजेशन की समस्या बढ़ने लगती है। इससे सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। अब वायुमार्ग में आने वाली समस्या के चलते निमोनिया का खतरा बढ़ने लगता है। निमोनिया चार स्टेज से होकर गुज़रता है जिसमें कंजेशन, रेड हेपेटाईजेशन, ग्रे हेपेटाईजेशन और रिज़ॉल्यूशन शामिल है।
शुरूआती दौर में बार-बार खांसी का उठना और खांसने व सांस लेने वक्त चेस्ट में दर्द महसूस होने लगता है। इसके बाद खांसी के साथ बलगम आने लगता है जो सांस लेने में तकलीफ का कारण बनने लगती है।
बैक्टीरिया और फंगस समेत कई प्रकार के माइक्रोऑर्गेज्म बुखार का कारण बनने लगते हैं। इससे शरीर का तापमान बढ़ जाता है। साथ ही पसीना और तेज़ कंपन होने लगती है।
कोई भी कार्य करते वक्त अतिरिक्त थकान का अनुभव होता है। शरीर में दर्द व मांसपेशियों में ऐंठन महसूस होने लगती है। इसके अलावा ब्लड प्रेशर भी बढ़ने लगता है।
पेट में हल्का दर्द और दस्त की शिकायत रहती है। इसके अलावा बार बार जी मचलाना व सिरदर्द की समस्या बढ़ने लगती है। निमोनिया में दिल की घड़कन बढ़ने लगती है और अजीब उलझन बनी रहती है।
इस टेस्ट के ज़रिए नॉन इनवेसिव तरीके से ब्लड में ऑक्सीजन स्तर की जांच करने में मदद मिलती है। इसके अलावा पल्स ऑक्सीमेटरी की जांच के लिए ब्लड टेस्ट भी करवाया जाता है, जिसमें व्हाइट ब्लड सेल्स की भी जांच की जाती है।
फेफड़ों की स्थिति को जानने के लिए सीटी स्कैन की आवश्यकता होती है। इसके अलावा ज्यादा खांसी के चलते बलगम की जांच होती है।
इंफ्लामेशन और बक्टीरियल ग्रोथ की जानकारी के लिए एक्स रे भी करवाया जाता है। इससे शरीर में मौजूद इंफेक्शन को समय रहते डिटेक्ट किया जा सकता है।
निमोनिया से ग्रस्त मरीज के पेशाब की भी जांच होती है। यूरिन में बैक्टीरिया स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया की जांच के लिए ये टेस्ट करवाया जाता है।
निमोनिया सहित अन्य प्रकार के बैक्टीरिया जो श्वसन पथ को ब्लॉक कर रहे हैं। उसकी जांच के लिए इस टेस्ट की सिफारिश की जाती है।कफ के साथ निकलने वाले म्यूक्स के सैंपल कलेक्ट किए जाते हैं।
कई प्रकार के संक्रमणों से बचने के लिए निमोनिया की वैक्सीनेशन बेहद ज़रूरी है। जो शरीर में बैक्टीरिया के प्रभाव को कम कर देता है। बच्चों की रोकथाम के लिए 6 महीने के बच्चे को फ्लू के इंजेक्शन दिए जाते हैं। इसके अलावा 2 साल या उससे कम उम्र के बच्चे को निमोनिया की वैक्सीन दी जाती है।
बैक्टीरियल निमोनिया से ग्रस्त होने पर डॉक्टरी सलाह से एस्पिरिन, पेरासिटामोल और इबुप्रोफेन ली जा सकती है। जो संक्रमण की रोकथाम में मददगार साबित होती है।
अगर कोई व्यक्ति निमोनिया के साथ साथ फंगल इंफे्क्शन से भी ग्रस्त है। तो उसे एंटीफंगल दवाएं दी जाती है। ये समस्या आमतौर पर मधुमेह जैसे कोमोर्बिडिटी वाले रोगियों में देखी जाती है। ऐसे मरीज डॉक्टर की सलाह के बाद फ्लुकोनाज़ोल, इट्राकोनाज़ोल और एम्फोटेरिसिन बी दवा ले सकते हैं।
इस प्रकार की दवाएं किसी भी प्रकार के वायरस से लड़ने में मददगार साबित होती हैं। इससे उपचार में सुधार देखने को मिलता है। वे लोग जो इस समस्या से ग्रस्त है। उन्हें डॉक्टर से परामर्श के बाद ही ओसेल्टामिविर इन्फ्लूएंजा वायरस और रेमडेसिविर कोविड दवा लेनी चाहिए।
म्यूकोलिटिक्स के तौर पर एसिटाइलसिस्टीन का इस्तेमाल किया जाता है। इसे खासतौर से निमोनिया, सीओपीडी और ब्रोंकाइटिस जैसे श्वसन रोगों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। जो वायुमार्ग में बलगम को ढीला और थिन कर देती है।
जहां बच्चों में बैक्टीरियल इंफे्क्शन तो वहीं बड़ों और बुजुर्गों में अत्यधिक स्मोकिंग इसका कारण साबित होता है। इसके अलावा पर्यावरण में बढ़ने वाला प्रदूषण और मौसम में आने वाली हल्की सी तब्दीली भी इस परेशानी को बढ़ा देती है। वहीं वे लोग जो फेफड़ों की समस्या से ग्रस्त हैं। उन्हें भी इस परेशानी से होकर गुज़रना पड़ सकता है।
5 साल या उससे कम और 60 वर्ष से ज्यादा उम्रके लोगों को निमोनिया की शिकायत का अधिक खतरा रहता है। जहां बच्चों में उल्टी, दस्त, बुखार और चेस्ट कंजेशन की शिकायत रहती है। वहीं बुजुर्गों में निमोनिया के चलते तनाव और भ्रम की स्थिति बनी रहती है। इसके अलावा शरीर का तापमान भी बढ़ने लगता है।
सांस लेने में तकलीफ, चेस्ट पेन और लगातार खांसी उठने के कारण डॉक्टरी जांच करवाना आवश्यक है। 65 वर्ष से ज्यादा और 2 साल से कम उम्र के बच्चों में चेस्ट कंजेशन की शिकायत रहती है। जो निमोनिया का कारण साबित होता है। इसके अलावा बच्चों से लेकर बढ़ो तक कपकपी से बुखार होने लगता है।
निमोनिया का इलाज फेफड़ों की सेहत पर निर्भर करता है। आमतौर पर 7 से लेकर 15 दिनों तक इस समस्या से राहत मिल सकती है। वहीं कुछ मरीजों को 1 से लेकर 3 महीनों तक का भी समय लग सकता है। छोटे बच्चों में निमोनिया की रोकथाम के लिए वैक्सीन के अलावा मां का दूध भी बेहद फायदेमंद साबित होता है।