हीमोफीलिया

UPDATED ON: 29 Mar 2024, 19:44 PM
मेडिकली रिव्यूड

हीमोफीलिया यानि एक ऐसा ब्लीडिंग डिसऑर्डर, जिसमें खून के थक्के न बन पाने के कारण ब्लीडिंग रूकने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है। वे लोग जो इस समस्या से ग्रस्त होते हैं, उनमें चोट के बाद बढ़ने वाली ब्लीडिंग नेचुरली नहीं रूकती है। हीमोफीलिया से ग्रस्त लोगों में क्लॉटिंग फैक्टर्स की कमी पाई जाती है। दरअसल, इनके शरीर में खूब को क्लॉट्स की फॉर्म में परिवर्तित करने वाला प्रोटीन शरीर में कम होने लगता है, जिससे बहते खून को रोक पाना मुश्किल हो जाता है। ये एक जेनेटिक डिसऑर्डर है, जो बच्चों में माता पिता के कारण बढ़ने लगता है।   

blood clotting se kaise bachein
आंवला का सेवन करने से एंडोथेलियल फ़ंक्शन में सुधार आता है, जिससे रक्त की तरलता और प्लेटलेट का स्तर उचित बना रहता है। चित्र : अडोबी स्टॉक

रक्त के थक्के न जम पाने की ये स्थिति अनुवांशिक यानि जेनेटिक होती है। महिलाओं की तुलना में पुरूषों में हीमोफीलिया के अधिक मामले पाए जाते हैं। इस इनहेरेटिड ब्लीडिंग डिसऑर्डर में मामूली चोट लगने या सर्जरी के बाद रक्तस्राव जारी रहता है।  दरअसल, ब्लड में मौजूद प्रोटीन ब्लड को क्लॉट की फॉर्म में लाने में मदद करते हैं।  वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफीलिया के अनुसार दुनिया भर में हीमोफीलिया के 815,100 मामले पाए गए हैं। इनमें से सिर्फ 347,026 का निदान किया जाता हैए और 276,900 मामलें में हीमोफीलिया गंभीर अवस्था में पाया गया हैं।

शरीर में हीमोफीलिया का स्तर क्लॉटिंग फैक्टर्स के हिसाब से बढ़ता और घटता है। शरीर में प्रोटीन की कमी इस समस्या को बढ़ा देती है। खून में मौजूद प्रोटीन क्लॉटिंग फैक्टर्स होते हैं, जो रक्त के थक्के बनाने के लिए प्लेटलेट्स के साथ मिलकर कार्य करते हैं। इससे शरीर के अंदर रक्तस्राव नियंत्रित होता हैं। शरीर में कम क्लॉटिंग फैक्टर्स रक्तस्राव के जोखिम को बढ़ा देते हैं। 

हीमोफीलिया : कारण

हीमोफीलिया एक जेनेटिक बीमारी है, जो एक्स क्रोमोज़ोम पर निर्भर करती है। हीमोफीलिया ए और बी एक्स क्रोमोज़ोम के कारण जन्म के समय मां से बच्चे में आ सकती है। दरअसल, पुरूषों में एक्स और वाई दोनों पाए जाते हैं, जब कि महिलाओं में दोनों एक्स क्रोमोज़ोम ही पाए जाते हैं। दरअसल, पुरूष जब एक्स क्रोमोज़ोम को प्राप्त करता है, तो वो इस समस्या से सक्रंमित हो सकता है। अगर किसी महिला में दोनों एक्स क्रोमोज़ोम में से एक हीमोफीलिया की वाहक है, तो उससे वो बीमारी बच्चों में भी बढ़ने लगती है। वहीं जिन लोगों को ये बीमारी विरासत में नहीं मिलती है, उसे एक्वायर्ड हीमोफीलिया कहा जाता है। 

हीमोफीलिया के तीन प्रकार होते है। जहां हीमोफिलिया ए के लिए क्लॉटिंग फैक्टर आठ और हीमोफीलिया बी के लिए क्लॉटिंग फैक्टर नौ की कमी को दर्शाता है। वहीं हीमोफीलिया सी के लिए फैक्टर नौ डेफिशेंसी पाई जाती है। 

हीमोफीलिया ए 

वे लोग जिनके शरीर में क्लॉटिंग फैक्टर आठ की कमी पाई जाती है, वे हीमोफीलिया ए की स्थिति से ग्रस्त होते हैं। हीमोफीलिया ए एक जेनेटिक डिसऑर्डर है, जो पेरेंटस से बच्चों में आता है। ये गर्भवती महिलाओं और 60 से 80 साल की उम्र के लोगों में पाया जाता है।

हीमोफीलिया बी

क्लॉटिंग फैक्टर नौ की डेफिशेंसी से ग्रस्त लोगों को हीमोफीलिया बी का सामना करना पड़ता है। इसे क्रिसमस डिज़ीज़ भी कहाकिसी जाता है। आमतौर पर पुरूष इस बीमारी से ग्रस्त होते हैं। इससे ग्रस्त व्यक्ति के जोड़ों में इंटरनल ब्लीडिंग का खतरा बढ़ जाता है। 

हीमोफीलिया सी

इससे पीडित लोगों में क्लॉटिंग फैक्टर ग्यारह की डेफिशेंसी पाई जाती है। ये बहुत ककम लोगों में पाया गया है। हर 100,000 में से किसी एक व्यक्ति में ये समस्या पाई जाती है। ये किसी गंभीर इंजरी और बड़ी सर्जरी के बाद लोगों में देखा जाता है। 

हीमोफीलिया : लक्षण

हीमोफीलिया आपके रक्त में थक्के कारक की मात्रा के आधार पर गंभीर, मध्यम या हल्का हो सकता है। वे लोग जो इस रोग से ग्रस्त होते हैं, उनमें पाए जाएने वाले कुछ लक्षण इस रोग की ओर इशारा करते हैं।

  1. हीमोफीलिया से ग्रस्त लोगों में नाक से खून बहने की समस्या बढ़ जाती है।
  2. किसी चोट, घाव या सर्जरी के बाद ब्लीडिंग लगातार जारी रहती है।
  3. त्वचा पर गहरे नीले निशान नज़र आने लगते हैं।
  4. जोड़ों में दर्द और सूजन के बढ़ले की समस्या का सामना करना
  5. महिलाओं में पीरियड के दौरान ब्लड फ्लो का अचानक बढ़ जाना
  6. ज्वाइंटस और मसल्स से रक्त का स्त्राव होने लगना
  7. यूरिनेशन और स्टूल पास करने के दौरान ब्लीडिंग का होना
  8. इससे ब्रेन में इंटरनल ब्लीडिंग बढ़ने लगती है और सिरदर्द का सामना करना पड़ता है।
  9. दांतों और मसूढ़ों से भी खून बहने लगता है।

हीमोफीलिया : निदान

प्रीनेटल जेनेटिक टेस्ट 

हीमोफीलिया की समस्या का पता लगाने के लिए प्रेगनेंसी से पहले टेस्ट करवाया जाता है। इसे जेनेटिक टेस्ट कहा जाता है। इससे बच्चे पर बढ़ने वाली बीमारी के खतरे की जानकारी मिल जाती है।  

क्लॉटिंग फैक्टर टेस्ट

क्लॉटिंग फैक्टर रक्त में मौजूद उस प्रोटीन को कहते हैं, जोब्लीडिंग को रोकने में मदद करता है। इस टेस्ट के ज़रिए हीमोफीलिया के प्रकार और गंभीरता की जानकारी मिल जाती है। टेस्ट के बाद इलाज करने में आसानी मिलती है। 

सीबीसी यानि कंप्लीट ब्लड टेस्ट

इसके ज़रिए व्यक्ति के शरीर में मौजूद ब्लड सेल्स की मात्रा की मात्रकारी मिल जाती है। वे लोग जो हीमोफीलिया से ग्रस्त होते है और ब्लीडिंग का शिकार होते है, उनमें ब्लड सेल्स का काउंट घटने लगता है। 

हीमोफीलिया : उपचार

टीकाकरण

वे लोग जो हीमोफीलिया से ग्रस्त है, उन्हें हेपेटाइटिस ए और बी वैक्सीनेशन डॉक्टर की सलाह और पूर्ण जांच के बाद लेनी चाहिए। इससे बीमारी की रोकथाम में मदद मिल जाती है और व्यक्ति लंबे वक्त तक स्वस्थ रहता है।  

घाव या मामूली इंजरी का रखें ख्याल

ये बीमारी एक ब्लीडिंग डिसऑर्डर है। वे लोग जो इससे ग्रस्त हैं, उन्हें किसी घाव, चोट या मामूली इंजरी में भी रक्त स्त्राव को रोकने के लिए प्राथामिक चिकित्सा अवश्य लेनी चाहिए। इससे खून की कमी ये बचा जा सकता है। 

दवाओं का सेवन

डॉक्टरी जांच और सलाह के बाद शरीर में क्लॉटिंग फैक्टर बढ़ाने के लिए फिब्रिन सीलेंटस का सेवन करें। वे लोग जो दांतों में ब्लीडिंग का सामना करते हैं, उनके लिए ये दवा कारगर साबित होती है। इसके अलावा विटामिन डी और कैल्शियम सप्लीमेंटस को रूटीन में लेना भी फायदेमंद साबित होता है। 

थेरेपी

अधिकतर लोगों में हीमोफीलिया के चलते ज्वाइंट डैमेज की समस्या बढ़ जाती है। उन्हें जोड़ों में दर्द का सामना करना पड़ता है। ज्वाइंट पेन से राहत पाने के लिए फिज़िकल एक्सरसाइज़ बेहद आवश्यक है। इससे मांसपेशियों में बढ़ने वाली ऐंठन दूर होने लगती है।

हीमोफीलिया : संबंधित प्रश्न

कैसे पता लगाएं कि आप हीमोफीलिया से ग्रस्त हैं ?

तेज़ सिरदर्द, जोड़ों में सूजन, दर्द, घाव का न भरना व इंटरनल ब्लीडिंग इस समस्या के मुख्य लक्षण है। ऐसे रोगियों में रक्त की कमी बढ़ जाती है, जो शरीर में थकान और आलस्य का कारण बनने लगते हैं। ऐसी स्थिति में डाक्टरी जांच तुरंत करवाएं।

क्या हीमोफीलिया एक सामान्य बीमारी है ?

जी नहीं, सीडीसी के रिसर्च के अनुसार हर 5,000 लोगों से में ये किसी 1 व्यक्ति को अपनी चपेट लेती है। ये ज्यादातर पुरूषों को प्रभावित करती है। आमतौर पर लोग मोफीलिया ए और बी से ग्रस्त पाए जाते हैं, जो जेनेटिक डिसऑर्डर है।

हीमोफीलिया के रोगी को क्या खाना चाहिए ?

उचित आहार हीमोफीलिया के रोगी की सेहत को उचित बनाए रखने में मदद करता है। ऐसे रोगियों को आयरन और एनिमल प्रोटीन से भरपूर डाइट लेनी चाहिए। इन्हें अपनी मील्स में चर्बी रहित लाल मांस शामिल करना चाहिए, जो क्लॉटिंग फैक्टर में मददगार साबित होता है। इसके अलावा सी फूड और हरी पत्तेदार सब्जियों को सम्मिलित करें।

हीमोफीलिया रोग स्त्रियों को क्यों नहीं होता?

महिलाओं के शरीर के ब्लड सेल्स में एक्स क्रोमोज़ोम की 2 कॉपी होती हैं। दूसरी ओर पुरुषों के शरीर में एक एक्स क्रोमोज़ोम और एक वाई क्रोमोज़ोम पाया जाता है। इसी के चलते हीमोफीलिया पुरुषों में बहुत आम है। कुछ महिलाओं को हीमोफीलिया अनुवाशिंक रूप से विरासत में मिलता है। वो उन्हें खुद को प्रभावित नहीं करता, मगर उनके बच्चों में वो जीन पास होने लगती हैं।