पॉलीसिस्टिक किडनी रोग (polycystic kidney disease) एक ऐसा अनुवांशिक यानि जेनेटिक रोग है, जिसके चलते किडनी में तरल पदार्थ की एक थैली विकसित होने लगती है। इसे सिस्ट भी कहा जाता है। इसके चलते किडनी में आकार में अंतर आने लगता है। सिस्ट पूरी तरह से नॉन कैंसरस है, जिसमें फ्लूइड की मात्रा होती है।
दिनचर्या में आने वाले बदलाव किडनी संबधी समस्याओं का मुख्य कारण साबित होते हैं। खानपान में बरती जाने वाली अनियमितताओं से किडनी में सिस्ट की समस्या का सामना करना पड़ता है। इस समस्या को पॉलीसिस्टिक किडनी रोग (polycystic kidney disease) या पीकेडी (PKD) कहा जाता है।
इसके चलते हाई ब्लड प्रेशर और किडनी फेलियर का जोखिम बढ़ जाता है। अल्सर की मात्रा ज्यादा होने से किडनी बड़ी हो जाती है। इसका असर धीरे-धीरे किडनी की कार्यक्षमता पर भी दिखने लगता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 600,000 लोग पीकेडी से ग्रस्त है। इसे किडनी खराब होने का चौथा मुख्य कारण माना जाता है। चाहे महिलाएं हो या पुरुष दोनों में ही इस बीमारी का समान जोखिम देखने को मिलता है। नेशनल किडनी फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्वभर में 10 फीसदी लोग ऐसे हैं, जो क्रानिक किडनी डिज़ीज़ की चपेट में हैं।
इससे ग्रस्त लोगों में अक्सर ब्लड प्रेशर बढ़ने व स्ट्रोक या कार्डियक अरेस्ट का खतरा बना रहता है। नेशनल किडनी फाउंडेशन के अनुसार लगभग 40 फीसदी प्रेगनेंट महिलाओं में हाई ब्लड प्रेशर का खतरा बना रहता है। इसके चलते प्री.एक्लेमप्सिया या टॉक्सीमिया का खतरा बढ़ने लगता है, जो मां और बच्चे दोनों के लिए जोखिम से भरा होता है।
ये बिना किसी गंभीर संकेत के शरीर में बढ़ने लगता है। पीकेडी के चलते महिलाओं को गर्भावस्था में हाई ब्लड प्रेशर की समस्या का सामना करना पड़ता है। ऐसे में डॉक्टर के बताए उपचार को अपने रूटीन में अवश्य शामिल करें।
वे लोग जो खानपान में कोताही बरतते हैं, उनमें इस समस्या का खतरा बढ़ने लगता है। इसके चलते एसिडिटी, ब्लोटिंग, पेट दर्द व सूजन का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा फैमिली हिस्ट्री भी इस समस्या के जोखिम को बढ़ा देती है। किडनी रोग से प्रभावित होने के चलते शरीर में यूरिया व क्रेटनाइन के लेवल में उतार चढ़ाव देखने को मिलता है। ऐसे में मसालेदार या तले भुने खाने से परहेज करना चाहिए और सेहत का ख्याल रखना आवश्यक है।
एबनॉर्मल यानि असामान्य जीन पॉलीसिस्टिक किडनी रोग का कारण बन सकते हैं। परिवार में यदि माता-पिता में से कोई भी इस समस्या से ग्रस्त है, तो पॉलीसिस्टिक किडनी रोग का खतरा बढ़ने लगता है। जेनेटिक फ्लॉज के चलते पॉलीसिस्टिक किडनी रोग के दो मुख्य प्रकार होते हैं।
ऑटोसोमल डॉमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिज़ीज़
इस समस्या के लक्षण आमातौर पर 30 से 40 वर्ष की उम्र के लोगों में देखने को मिलते हैं। ऐसे में इस समस्या को एडल्ट पॉलीसिस्टिक किडनी रोग कहा जाता था, जिसके लक्षण बचपन में बच्चों में बढ़ने लगते हैं। माता-पिता में से किसी एक को भी इस समस्या से ग्रस्त होने के चलते बच्चों में इस समस्या का जोखिम बढ़ने लगता है।
एनआईएच की रिसर्च के अनुसार माता पिता में होने वाले इस रोग के चलते बच्चों में इस समस्या का खतरा 50 फीसदी तक बढ़ जाता है।
ऑटोसोमल रिसेसिव पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज
ऑटोसोमल रिसेसिव पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज ऑटोसोमल डॉमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिज़ीज की तुलना में बेहद कम है। इसके लक्षण जन्म के तुरंत बाद दिखाई देते हैं। मगर कभी.कभार बचपन या किशोरावस्था के दौरान भी लक्षण प्रकट नहीं हो पाते हैं। वे लोग जिनके माता पिता दोनों में एबनॉर्मल जीन पाई जाती है, उनमें इस समस्या का खतरा बढ़ जाता है।
माता और पिता दोनों में असामान्य जीन के कारण बच्चे में 25 फीसदी इस समस्या होने का जोखिम रहता है।
प्रमुख लक्षण | पॉलीसिस्टिक किडनी रोग में अन्य जटिलताएंहाई ब्लड प्रेशरवे लोग जो पॉलीसिस्टिक किडनी रोग से ग्रस्त है, उन्हें हाई ब्लड प्रेशर की समस्या का सामना करना पड़ता है। इससे किडनी को नुकसान पहुंचता है और हृदय रोग व स्ट्रोक का जोखिम बढ़ने लगता है। ब्लड प्रेशर बढ़ना किडनी रोग की समस्या का प्राथमिक संकेत है। वज़न में गिरावट आनाभूख कम लगने और बार बार होने वाली वॉमिटिंग के चलते इस समस्या से ग्रस्त लोगों को वेटलॉस का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा पाचनतंत्र में गड़बड़ी के चलते शरीर में कमज़ोरी महसूस होती है। लगातार वेटलॉस होना किडनी रोग का एक मुख्य संकेत है। पेट में दर्द व सूजनपाचनतंत्र के खराब होने के चलते तरल पदार्थों से शरीर में वॉटर रिटेंशन की समस्या का सामना करना पड़ता है। इससे पेट में सूजन का खतरा बना रहता है। इसके अलावा पेट के दांई व बाई तरफ दर्द महसूस होने लगता है। अधिकतर लोग इसे पीठ व कमर का दर्द समझने लगते हैं। किडनी की कार्यक्षमता में कमीकिडनी संबधी समस्याएं पॉलीसिस्टिक किडनी रोग को दर्शाता है। इस बीमारी से ग्रस्त लगभग आधे लोगों में 60 वर्ष की आयु तक किडनी फेलियर का खतरा बना रहता है। पीकेडी से किडनी का कार्य प्रभावित होता है। किडनी संबधी समस्या के चलते शरीर में मौजूद विषैले पदार्थों को डिटॉक्स नहीं कर पाते हैं। इससे शरीर में टॉक्सिन की मात्रा बढ़ने लगती है। इसके चलते किडनी डायलिसिस या टरांसप्लांट की आवश्यकता होती है। भूख कम होना या न लगनाकिडनी रोग से ग्रस्त होने पर उसका असर एपिटाइट पर नज़र आने लगता है। दरअसल, डाइजेशन संबधी समस्याओं के चलते भूख कम लगती है और पेट हर पल भरा हुआ महसूस होने लगता है। भूख कम लगने से शरीर के वज़न में उतार चढ़ाच देखने को मिलता है। इसके अलावा आलस्य की समस्या का भी सामना करना पड़ता है। लिवर में सिस्ट हो सकते हैंवे लोग जो पॉलीसिस्टिक किडनी रोग से ग्रस्त है, उनमें लिवर सिस्ट का खतरा बना रहता है। उम्र के साथ इसकी संभावना बढ़ने लगती है। ये लक्षण महिलाओं और पुरूष दोनों में ही पाए जाते हैं जब कि महिलाओं के लिवर में बनने वाली सिस्ट का आकार बड़ा देखा जाता है। दरअसल, महिला हार्मोन और प्रेगनेंसी लिवर सिस्ट का कारण साबित होती है। |
ब्लड सैंपल की मदद से क्रेटेनाइन, ब्लड यूरिया नाइटरोजन और इलैक्टरोलाइट्स के बारे में जानकारी मिल पाती है। इसके अलावा किडनी की कार्यप्रणाली की जानकारी मिल पाती है। दरअसल, किडनी रक्त, यूरिया, नाइट्रोजन और क्रिएटिनिन जैसे पदार्थों को फ़िल्टर करते हैं। इन पदार्थों के स्तर की जानकारी किडनी की समस्या को सुलझाने में मदद मिलती है।
इस नॉन इनवेसिव परीक्षण के दौरान ध्वनि तरंगों यानि साउंड वेव्स की मदद से किडनी में सिस्ट की जांच की जाती है।
इस टेस्ट की मदद से किडनी में बढ़ने वाली छोटे सिस्ट का अल्सर का पता लगाया जा सकता है। इस परीक्षण से किडनी के फं्क्शन की आसानी से जांच की जा सकती है।
एमआरआईमैगनेट का प्रयोग किया जाता है। इसकी मदद शरीर में किडनी की इमेज को विजयूलाइज़ करने और उसमें अल्सर की तलाश करने में मदद मिलती है। के लिए आपके शरीर की छवि बनाने के लिए मजबूत मैग्नेट का उपयोग करता है।
रक्त वाहिकाओं की जांच के लिए किए जाने वाले इस टेस्ट को एक्स रे की मदद से किया जाता है। किडनी की इमेज को स्पष्ट रूप से दिखाने के लिए एक डाई का उपयोग करता है।
रोज़ाना 30 मिनट व्यायाम या वॉक करने से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन नियमित हो जाता है। इसके चलते दर्द, ऐंठन, आलस्य और शारीरिक कमज़ोरी को दूर करने में मदद मिलती है। इसके अलावा योग और मॉडरेट एक्सरसाइज़ शरीर में स्टेमिना को बिल्ड करने में मदद करती है। इससे आलस्य से बचा जा सकता है।
नियमित तौर पर स्मोकिंग से ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है। शरीर को हेल्दी बनाए रखने और किडली संबधी समस्याओं को दूर करने के लिए स्मोकिंग और अल्कोहल से दूरी बनाकर रखें। इससे शरीर में मौजूद टॉक्सिक पदार्थों से मुक्ति मिल जाती है और शरीर में निर्जलीकरण की समस्या नहीं रहती है।
किडली की समस्या को दूर करने और किडनी फेलियर से बचने के लिए डॉक्टरी जांच समय समय पर करवाएं और बताई गई दवाओं का नियमित तौर पर सेवन करें। इससे ब्लड प्रेशर को नियंत्रित कर हृदय संबधी समस्याओं से बचा जा सकता है।
इससे शरीर में सोडियम की मात्रा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। खुद को हाइड्रेट रखें। इससे शरीर में मौजूद टॉक्सिन को डिटॉक्स करने में मदद मिलती है। शरीर को हेल्दी बनाए रखें और डायटीशियन के अनुसार आहार लें।
एंटीऑक्सीडेंट्स और फाइबर से भरपूर फलों और सब्जियों का सेवन करने से शरीर में मौजूद विषैले पदार्थों को डिटॉक्स करने में मदद मिलती है। इसके लिए डाइट में एवोकाडो, प्याज, फूलगोभी, लहसुन, अनार व तरबूज को शामिल करे। इससे शरीर को विटामिन, मिनरल, फोलेट, पोटेशियम व मैग्नीशियम की उच्च प्राप्त होती है।
किडनी की समस्या के चलते मस्तिष्क में रक्त वाहिका के गुब्बारे जैसे फटने पर रक्तस्राव का सामना करना पड़ता है। इस समस्या को ऐन्यरिज़म कहा जाता है। पॉलीसिस्टिक किडनी रोग वाले लोगों में एन्यूरिज्म का खतरा अधिक बना रहता है। अनुवांशिकता इस समस्या के खतरे को बढ़ा सकती है। स्क्रीनिंग की मदद से इस समस्या की जानकारी मिल सकती है।
पेट के दाएं और बाएं हिस्से में किडनी का दर्द उठने लगता है। अक्सर लोग इस दर्द को बैक पेन से जोड़कर देखने लगते हैं। ये दर्द शरीर में तेज़ी से बढ़ने लगता है। पेट के पिछले हिस्से की पसली के नीचे किडनी का दर्द होने लगता है। सूजन के अलावा विटामिन डी की कमी भी पीठ में दर्द का कारण बन सकती है।
किडनी में होने वाली समस्या का संकेत मिलते ही तुरंत इलाज करवाने से इस रोग से बचा जा सकता है। वहीं जब किडनी की समस्या बढ़ने लगे और तकरीबन 3 महीने का समय बीत चुका हो, तो उस वक्त इस क्रानिक समस्या को दूर करना आसान नहीं होता है।